मुंबई, 14 जून:
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पहली बार आयोजित ‘बिहारी स्वाभिमान सम्मेलन 2025’ में संस्कृति, संवाद, संवेदना और संकल्प का अनूठा संगम देखने को मिला। आयोजन स्थल लता मंगेशकर ऑडिटोरियम, दहिसर में प्रवासी बिहारियों की ऐतिहासिक उपस्थिति दर्ज हुई, जिसने इस सम्मेलन को एक जन आंदोलन का रूप दे दिया।
इस आयोजन की शान रहे पद्म भूषण सम्मानित गायक उदित नारायण, जिन्होंने मंच पर प्रस्तुति से पहले अहमदाबाद हवाई हादसे पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा:
“यह घटना अत्यंत दुखद और दिल को झकझोरने वाली है। मेरी संवेदनाएं उन सभी परिवारों के साथ हैं जिन्होंने अपनों को खोया है।”
संगीत और संवेदना का संगम
इसके बाद जब उन्होंने मशहूर गीत “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” गाया, तो पूरा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा। उन्होंने अपनी पत्नी दीपा नारायण झा के साथ लोकप्रिय मैथिली गीत “कनी हैस क कहु” प्रस्तुत किया, और फिर “मैं निकला गाड़ी लेकर” गाकर पूरे सभागार को झूमने पर मजबूर कर दिया।
“बिहार से बिहारी निकल सकता है…”
पूर्व सांसद संजय निरुपम ने सम्मेलन में कहा:
“बिहार से बिहारी निकल सकता है, लेकिन बिहारी के अंदर से बिहार नहीं निकल सकता।”
उनकी इस पंक्ति ने प्रवासी बिहारियों की भावना को गहराई से छू लिया और पूरे हाल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी।
सशक्त बिहार की घोषणाएं भी हुईं
सम्मेलन में पहुंचे उद्योग और राजनीति जगत के कई वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने मंच से बिहार को आर्थिक, शैक्षणिक और तकनीकी रूप से सशक्त बनाने के लिए कई अहम घोषणाएं कीं। उन्होंने बिहार में निवेश, स्टार्टअप सहयोग, स्किल डेवलपमेंट और युवाओं को रोजगार देने की योजनाओं की भी रूपरेखा साझा की।
बिहार के भविष्य पर तीन महत्वपूर्ण सत्र
सम्मेलन में तीन प्रमुख विषयों पर चर्चा हुई:
साहित्य, सिनेमा और संस्कृति
राजनीति और शासन – ‘बिहार: विजन 2035’
उद्यमिता और नवाचार – ‘न्यू एज बिहारी उद्यमी’
इन सत्रों में आईएएस अधिकारी, नीति विशेषज्ञ, फिल्मकार, पत्रकार और युवा लीडर्स ने अपने विचार रखे।
लिट्टी-चोखा से स्वागत, लोकगीत से विदाई
प्रवासी बिहारियों का स्वागत पारंपरिक लिट्टी-चोखा और चाय से किया गया। पूरा माहौल मैथिली और भोजपुरी संगीत से सराबोर रहा, जिसने सभागार को घर जैसा एहसास दिया।
संस्थापक मनोरमा झा का वक्तव्य
शुभसीता फाउंडेशन की संस्थापक मनोरमा झा ने कहा:
“यह सम्मेलन सिर्फ एक आयोजन नहीं बल्कि एक जनचेतना है – बिहारी अस्मिता, आत्मसम्मान और सामूहिक भविष्य की दिशा में हमारा एकजुट कदम।”
यह सम्मेलन न केवल संस्कृति का उत्सव था, बल्कि बिहार के भविष्य के लिए एक ठोस संकल्प भी। प्रवासी बिहारियों की आवाज़, आत्मगौरव और योगदान का यह संगम अब हर वर्ष आयोजित होगा — यही इसका वादा और विज़न है।